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Editorial/सम्पादकीय

सामाजिक समरसता के सूत्रधार डा.भीमराव अंबेडकर

भारत विश्व का सबसे प्राचीन देश है। यहां की संस्कृति, समाज व्यवस्था, रीति रिवाज और परंपराएं भी अतिप्राचीन हैं। यहां वैदिक एवं पौराणिक काल से लेकर अब तक अनेकों संतों, मुनियों, ऋषियों ने धर्म, दर्शन, साहित्य, अध्यात्म के माध्यम से भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का तथा राष्ट्र के निर्माण एवं विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। चक्रवर्ती साम्राज्य होने के बाद राजनीतिक कारणों से भारत का पतन हुआ। भारत सदियों तक गुलाम रहा। कालांतर में गुलामी की जंजीरों को काटने में भी प्राचीन साहित्य और तत्कालीन समाज सुधारकों, स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों से देश आजाद हुआ। पहले भारत की आजादी में और बाद में राष्ट्र के विकास में जिन महापुरुषों का अद्वितीय योगदान रहा उनमें डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम आदर से लिया जाता है। डॉ भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के निर्माता और समाज सुधारक के तौर पर याद किए जाते हैं। 

डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य भारत के महू में हुआ। उनके पिता राम जी सतपाल सेना में अध्यापक थे। अंबेडकर के परिवार का कुलनाम सतपाल था। उनके पूर्वजों के ने कुल नाम के स्थान पर उनका नाम पुश्तैनी ग्राम अंबावडे के ऊपर रखा सतारा हाई स्कूल में अंबेडकर नाम के एक अध्यापक थे जो भीमराव को अत्यधिक प्यार करते थे। वे अक्सर उन्हें भोजन भी खिलाया करते थे। अपने अध्यापक के प्रति असीम श्रद्धावश उन्हें सम्मान प्रदान करने के लिए भीमाराव ने अपना नाम अंबेडकर रख लिया। यद्यपि परिवार में कबीरपंथी विचार माने जाते थे परंतु भीमाराव को सब तरह का साहित्य पढ़ने का शौक था। 

भीमा राव की मां का नाम भीमाबाई था। अंबेडकर का विवाह 16 वर्ष की आयु में रानी बाई के साथ हुआ। 27 मई 1935 को उनकी पत्नी का देहांत हुआ। पहली पत्नी के देहांत के बाद उन्होंने केसरिया वस्त्र धारण कर लिया। बीमारी की अवस्था में उनकी सेवा करने वाली चिकित्सक डॉ. शारदा कबीर के साथ 1948 में अंबेडकर का दूसरा विवाह हुआ। 

अंबेडकर ने 1907 में मैट्रिक और 1912 में बीए की परीक्षा पास की। सयाजीराव गायकवाड ने अछूत जाति के बच्चों को छात्रवृत्ति देने की घोषणा की। अंबेडकर ने बड़ौदा के महाराजा के यहां लेफ्टिनेंट के पद पर नौकरी की परंतु छुआछूत व भेदभाव के कारण नौकरी करने में परेशानी रही। बड़ौदा के महाराज द्वारा प्रदत छात्रवृत्ति के अंतर्गत कोलंबिया विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा हासिल की। प्राचीन भारतीय व्यापार विषय पर एम ए की डिग्री मिली। 1916 में नेशनल डिविडेंड फॉर इंडिया स्टोरी एंड एनालिटिकल स्टडी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 1916 में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पॉलीटिकल साइंस में अध्ययन किया जहां प्रोफे़सर कैनन की सिफारिश पर 1917 में अध्यापन की अनुमति मिली। 

 27 जुलाई 1917 में भारत वापस आए तथा 1917 से 1920 के दौरान अंबेडकर ने कई तरह के व्यवसाय करने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हो सके। आरती गाना भारत वापस आने के बाद अंबेडकर ने समझौते के अनुसार महाराजा बड़ौदा के यहां नौकरी की महाराजा ने उन्हें अपना सैन्य सचिव नियुक्त किया किंतु जातिवाद के दुष्परिणाम के कारण उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें पूरे बड़ौदा में रहने के लिए कमरा भी किराए पर नहीं मिला उनके व्यवहार सहयोगियों का भी उनके साथ व्यवहार अच्छा नहीं था यहां रहने की व्यवस्था ना होने पर अंबेडकर को मजबूरन वापस मुंबई आना पड़ा और वे चाहते हुए भी महाराजा के साथ अपना वचन नहीं निभा सके1918 में कॉलेज में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति हुई परंतु यहां भी सामाजिक भेदभाव के कारण वह अधिक देर तक नहीं रुक सके। 1920 में कोल्हापुर के महाराज साहू छत्रपति द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता से कानून व अर्थशास्त्र की पढ़ाई के लिए पुनः विदेश गए। 1921 में लंदन विश्वविद्यालय में एमए अर्थशास्त्र की डिग्री के लिए उनकी फीस स्वीकार की यह सब विषय था प्रोविंशियल जिस-जिस सेंट्रलाइजेशन ऑफ इंपीरियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया सन 1922 23 के दौरान उन्होंने जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में कुछ महीने तक 800 शास्त्र का अध्ययन किया 1923 में ही डीएससी के लिए अपनी चीज सेवा प्रस्तुत की जो 1923 में लंदन की पीसी किंग एंड कंपनी ने प्रकाशित की। 1925 से 1928 तक अंबेडकर वाटली बॉयज अकाउंटेंसी ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में प्रोफेसर रहे।

इसी बीच 1927 में सरकार ने उन्हें मुंबई विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया। 1932 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने लंदन में होने वाली गोलमेज कांफ्रेंस में भाग लिया तथा दलितों के लिए सामाजिक न्याय की मांग की। 1935 में मुंबई की सरकार ने उनकी योग्यता के आधार पर उन्हें लॉ कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त किया। 1936 में स्वतंत्र मजदूर बल नामक संस्था का गठन किया। 1941 में वायसराय ने अपनी सुरक्षा सलाहकार परिषद में डॉक्टर अंबेडकर को सदस्य मनोनीत किया और 1942 में वे एक्सक्यूटिव काउंसिल में शामिल किए गए जिसमें 14 भारतीय व 5 यूरोपीय सदस्य थे। 1946 में स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन हुआ। अंबेडकर इसमें बंगाल से निर्वाचित हुए। पुनः 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त होने पर वह मुंबई से मनोनीत होकर आए। 24 अगस्त 1947 को उन्हें संविधान सभा की प्रारूप समिति का सदस्य चुना गया और बाद में भी इस समिति के अध्यक्ष चयनित हुए। उन्होंने स्वतंत्र भारत के निर्माण में विशेष योगदान दिया। 1947 में स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बने परंतु नेहरू के साथ कुछ विषयों पर मतभेद होने के कारण 27 सितंबर 1951 को उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। 1951 में भारत के प्रथम चुनाव में उनकी हार हुई।

1952 में अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। 12 जनवरी 1953 को उस्मानिया विश्वविद्यालय ने शिक्षा जगत की सर्वोच्च उपाधि डिलीप प्रदान की। 15 अक्टूबर 1956 को नागपुर नगर निगम ने अंबेडकर का नागरिक अभिनंदन किया और उन्हें एक समाज सुधारक, दार्शनिक और संवैधानिक विशेषज्ञ बताया।

जीवन के अंतिम समय में डॉ. अंबेडकर ने हिंदू धर्म को त्याग कर धर्म ग्रहण किया 15 अक्टूबर 1956 को उन्होंने सामूहिक धर्म परिवर्तन समारोह में भाग लिया। 5 दिसंबर 1956 को अपेंडिसाइटिस, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर से पीड़ित होने के बाद उनका देहांत हो गया। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध भिक्षुओं द्वारा संपन्न करवाया गया जिसमें लाखों लोग शामिल हुए और उनके दाह संस्कार के अवसर पर ही बौद्ध भिक्षुओं की उपस्थिति में लाखों लोगों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अनेकों पुस्तकों की रचना की जिनमें से प्रमुख हैं – दी अनटचेबल्स हू आर दे, हू आर द शूद्राज, बुद्धा एंड हिज धम्मा, द राइज एंड फाल आफ हिंदू वीमैन आदि। अंबेडकर के अनेक आलेख व्याख्यान भी पुस्तक आकार में प्रकाशित हुए हैं। अंबेडकर ने मूकनायक सप्ताहिक अखबार भी प्रकाशित किया इसके अलावा अनेक सामाजिक संस्थाओं का भी गठन किया जिनमें प्रमुख हैं- समता सैनिक, पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी, बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया, बहिष्कृत भारत, बहिष्कृत हितकारिणी सभा, अखिल भारतीय बहिष्कृत परिषद, अंंत्यज संघ आदि।

डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन पर संत कबीर, महात्मा ज्योतिबा फुले और गौतम बुद्ध का विशेष प्रभाव रहा। इनकी शिक्षाएं और चिंतन ने इन्हें राजनीति और समाज सेवा के माध्यम से सुधार आंदोलन के सूत्रपात के लिए प्रेरित किया। अंबेडकर एक पुस्तक प्रेमी व्यक्ति थे। नए विषयों को, नई पुस्तकों को पढ़ना उन्हें अच्छा लगता था।उन्हें नए विचारों तथा उपयोगी जानकारी को प्राप्त करके उन्हें लोकहित के लिए क्रियान्वित करना भी रुचिकर रहा है। डॉ अंबेडकर ने भारतीय संविधान निर्माण में विशेष भूमिका निभाई। संविधान समिति में कुछ सदस्यों की मृत्यु हो गई, कुछ विदेश चले गए और कुछ स्वास्थ्य संबंधी कारणों से अधिक समय नहीं दे पाए। इसलिए संविधान का प्रारूप तैयार करने में अंबेडकर को भारी परिश्रम करना पड़ा और उनके इसी योगदान को आंकते हुए उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है।

संविधान के निर्माण में उन्होंने विदेशी संविधान का अध्ययन करते हुए जहां उनकी अच्छी बातों को भारतीय संविधान में शामिल करने का प्रयास किया, वहीं अपनी चिंतन दृष्टि, अनुभव और विशेष अध्ययन से भी संविधान में विभिन्न विषयों को शामिल किया ताकि उससे भारतीय जनता का अधिक से अधिक कल्याण हो सके।

डॉ अंबेडकर ने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ विभिन्न सम्मेलनों में भाग लेते हुए भारत में राजनीति और समाज सुधार की दिशा में विशेष प्रयास किया। साइमन कमीशन, गोलमेज कांफ्रेंस में उन्होंने विशेष भूमिका निभाई। महिलाओं तथा दलितों के मंदिरों में प्रवेश कराने के लिए भी उन्होंने आंदोलन किए। भारत छोड़ो आंदोलन, क्रिप्स मिशन में भी उन्होंने अपने विचारों को प्रमुखता से प्रस्तुत किया। वास्तव में अंबेडकर उच्च वर्ग के विरोधी नहीं थे परंतु वे जातिभेद के कारण दलितों अछूतों के शोषण और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे और उन्हें समाज में समानता का अधिकार दिलवाना चाहते थे। डॉ अंबेडकर ने भारतीय धर्म, दर्शन, समाज व्यवस्था, धार्मिक , सांस्कृतिक व्यवस्था का भी गहन अध्ययन किया था। वे भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का पूर्ण सम्मान करते हुए दलितों के लिए समान स्थान अधिकार और कर्तव्य की पैरवी करना चाहते थे।

भीमराव अंबेडकर ने जन्म के आधार पर मनुस्मृति के माध्यम से प्रचारित तथाकथित वर्ण व्यवस्था का भी खुलकर विरोध किया। उनका यह मंतव्य रहा कि शूद्र और दलितों वंचितों को भी शिक्षा तथा रोजगार के अवसर में समानता प्रदान की जानी चाहिए। भीमाराव अंबेडकर अधिकार और कर्तव्य दोनों का साथ साथ निर्वहन करने पर बल देते थे। अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण अंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता और समाज सुधारक माना जाता है जो कि सर्वथा उनके महान व्यक्तित्व के अनुरूप है। सामाजिक समरसता की दिशा में उनके द्वारा किए गए सार्थक और सफल प्रयास आधुनिक भारत की नींव को मजबूत बनाते हैं जिस पर चलते हुए सामाजिक व्यवस्था के सरकारों को और अधिक विस्तार तथा समानता प्रदान किए जाने की आज भी आवश्यकता बनी हुई है।

डॉ कर्म सिंह, पूर्व सचिव 

हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी

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