एस आर हरनोट
आप या आपका कोई अपना सुबह तड़के नहा धो कर हाथ में जल का लोटा लिए ॐ नमः शिवाय का जाप करते किसी शिव मंदिर जाकर पूजा करने लगता है और तभी भयंकर गर्जना के साथ कई पूजारत भक्तों के साथ पूरा मंदिर जमींदोज हो जाता है……और पल भर में न मंदिर का और न लोगों का कहीं अतापता होता है…….सोच कर पूरा शरीर कांपने लग जाता है……
यही कुछ आज सुबह शिमला बालूगंज से नीचे स्थित शिव बांवड़ी में हुआ है। यहां एक विशाल मंदिर था। लगभग सात बजे सुबह उच्च अध्ययन संस्थान के काफी नीचे बादल फटने जैसी स्थिति उत्पन्न हुई और पूरी पहाड़ी कई देवदार के पेड़ों को समेटे मंदिर और उसमें तीस से चालीस भक्तों व अन्य लोगों को भी जमींदोज कर गई। शिमला का यह बहुत बड़ा दिल दहला देने वाला हादसा है जो शब्दों में नहीं केवल आंसुओं में बयान किया जा सकता है। कई परिवारों में शोक है। किसी का पति नहीं, किसी की पत्नी नहीं, किसी के बच्चे नहीं मिल रहे। कई मजदूर गायब है। मलबे से कुछ लाशें निकली है और शिमला प्रशासन के साथ लोग मलबे में दबे लोगों को निकाल रहे हैं। ऐसा ही एक हादसा फागली में हुआ जहां कई ढारे जमींदोज हो गए। शिमला उप नगरों की तकरीबन सारी सड़कें बंद है। जीवन जैसे ठहर सा गया है। हर व्यक्ति डरा सहमा सा है। रास्तों में चलते डर लगने लगा है कि किस समय कहां लैंड स्लाइड हो जाए या पेड़ गिर जाए…?
जहां यह हादसा हुआ बरसों पहले यहां केवल एक बांवडी होती थी जिसे शिव बांवड़ी कहते थे। गांव के लोग यहां से पानी भरा करते थे। धीरे धीरे यह जगह शिव पूजा में बदल गई। बाबा भक्तों ने मंदिर बनाना शुरू किया और देखते ही देखते विशाल मंदिर परिसर बन गया। शिमला के आसपास ऐसे अनेक मंदिर बन गए जिनके प्रति घोर आस्थाओं ने तमाम नियम कायदे ईश्वर के हवाले कर दिए और आमजन से लेकर सरकारों तक भक्ति में लीन सर झुकाती चली गई। काश! यह भय प्रकृति की क्रूरता से भी लगने लगता।
कुछ वर्षों पहले इसी शिव बांवड़ी के नीचे की ओर किराए के मकान में प्रख्यात आलोचक डॉ. वीर भारत तलवार और उनकी धर्मपत्नी शिवानी जी रहा करते थे। मैं कई बार उनके पास जाया करता था। मंदिर परिसर के बीच मैं भी हाथ जोड़ इस बांवड़ी के शीत जल में आस्था की डुबकी लगा लिया करता। यही रास्ता पैदल समरहिल तक भी जाता है और वापिस रेल पटरी से क्रॉस करता बालूगंज भी। आज तलवार जी से भी बात हुई और उन्हें जब इस हादसे के बारे में बताया तो वे बहुत आहत हुए।
लोग इस बार की बारिश को आफत की बारिश कह रहे हैं। सबसे भयंकर स्थिति ब्यास नदी के किनारे बसे मंडी, कुल्लू और मनाली की है, मंडी सुंदरनगर की बल्ह घाटी की है। तकरीबन हिमाचल के दूरदराज इलाके के घाटियों में बसे गांव गांव की है। लोग शाम को सोते हैं और सुबह वह घर, वह गांव गायब मिलता है। न जाने कितने गरीबों के घर नहीं रहे, पशु नहीं रहे, लोग नहीं रहे…..यहां तक कि कुल्लू मनाली में घूमने आए पर्यटकों के परिवार बह गए, दब गए, बसें नहीं रही। कितनी गाड़ियों पर पत्थर गिरे, कितनी बह गई। कितनी जमीनें ढह गई।
सबसे ज्यादा तबाही फॉर लेन की वजह से हुई है। तकरीबन सारे वह मार्ग बंद है जहां जहां फोरलेन बन रहा है। पहाड़ों को 90 के एंगल में काटा गया है। सड़कें चौड़ी करने के लिए कोई पुख्ता तकनीक नहीं। ऊपर का मलबा नीचे ठूंस दो और ऊपर से सीमेंट की लीपापोती। सड़कें जो बनी उनके किनारों में विशाल पेड़ या तो काट दिए गए या जड़ें खोद कर छोड़ दिए गए। भवनों के अधिकतर निर्माण सीधी 60 से 90 एंगल की पहाड़ियों को काट कर किए गए हैं। डंगो पर सारा निर्माण है। शायद स्वार्थ और व्यापार या उच्च जीवनशैली में रहने का यह अंधा समय है। जहां कोई तकनीक नहीं, कायदे कानून नहीं, डर भय नहीं, सुरक्षा नहीं…….सब सिफारिशों और रसूक पैसे के बल पर टिका है…. जिसका खामियाजा आज हिमाचल, हिमाचल के पहाड़, नदियां और निर्दोष लोग भुक्त रहे हैं।
हमने पहाड़ों को पर्यटन की अंधी दौड़ और आग में झोंक दिया है। जहां कहीं पानी का नाला भी दिखे वहां बस बिजली पैदा करने की परियोजनाएं लगनी चाहिए…..हमें घर घर चूल्हे के पास सड़कें चाहिए, फोरलेन चाहिए, गाड़ियों की सौ की स्पीड चाहिए…..यह जल्दी, यह अंध विकास, यह अंध सोच, यह राजनीतिक वोट नीति, यह पैसा कमाने की होड़ हिमाचल को तबाह करने के पुख्ता हथियार हैं।
इस बार की बारिश ने बता दिया है प्रकृति से मुठभेड़ या उसकी हत्या करके स्वार्थ और धन कमाने की होड़ सीधे मौत के रास्ते ले जाती है। प्रकृति को भी कहीं रहना है, उसे सांस लेना है, नदियों को अपनी जगह बहना है……पेड़ों को उगाना है…..हमने इस बार उसका आक्रोश और भयानक रूप देखा है…..जमीन पर भी और आसमान से भी।
हिमाचल को हिमाचल रहने दीजिए। पहाड़ों को पहाड़। यहां नदियों पहाड़ों की ज्यादा जरूरत है न कि खुले विशाल राजपथों की। इस धरती को पेड़ चाहिए, जल चाहिए। अंध विकास, अंध निर्माण, अंध पर्यटन और अंध वोट राजनीति नहीं। आप प्रकृति से नहीं भिड़ सकते…..उससे युद्ध नहीं कर सकते। प्रकृति को प्रकृति ही रहने दीजिए…..उससे बलात्कार मत कीजिए…..वह अबला नहीं है, असहाय नहीं है, उसकी अनगिनत भुजाएं हैं। वह दुर्गा है, लक्ष्मी है, सरस्वती है, कामाक्ष है, तारा है, धूमावती है, हिडिंबा है, विपाशा है, इरावती है, शतद्रु है, चंद्रभागा है, यमुना है, चामुंडा भीमकाली और महिषासुरमर्दिनी है….और महाकाली……उसका चीरहरण अपने विनाश को निमंत्रण है……इसलिए जो हिमाचल के पास आज बचा है उसे बचा लीजिए अन्यथा विनाश और प्रलय सामने हैं।
आज या अबतक जो निर्दोष जमींदोज हो गए हैं उनके लिए आंखें नम है, रो रही है, मन आहत है….जैसे ये हादसे मेरे, आप सभी के भीतर हो रहे हैं…..इन हत्याओं के लिए हम आप हमारी सरकारें उत्तरदायी हैं…..हम केवल संवेदनाएं व्यक्त कर सकते हैं…..इस दुख में हम सभी शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं। बेघरों के साथ हैं। बाकी हमारे हाथ में कुछ नहीं है……सभी आज ईश्वर के हाथ नहीं, हमारी बुलेट ट्रेन की रफ्तार में भागती सरकारों के हाथ है।
हे ईश्वर, हे प्रकृति हमें माफ कर दीजिए।आप सभी की सुरक्षा और कुशलता की कामनाओं सहित।
एस आर हरनोट