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Editorial/सम्पादकीय

जूए के बदलते स्वरूप का समाज और नवपीढ़ी पर प्रभाव

✍️ शिवकुमार शर्मा “शिवा”

जूआ एक गैर कानूनी गतिविधि है लेकिन वर्तमान अत्याधुनिक तकनीकी युग में जूआ खेलने वाले को प्रतिभाशाली की तरह दर्शाया जा रहा है, प्राचीन समय में जूए का प्रचलन उन लोगों में अधिक होता था को मदिरा पान इत्यादि व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में निन्दित कार्यों में संलिप्त होते थे। सभ्य समाज में उन्हें निन्दित व घृणित दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन समय के साथ–साथ तकनीकी ने जूए की छवि भी परिवर्तित कर दी। वर्तमान में ऑनलाइन माध्यम से विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न कंपनियों द्वारा सामूहिक रूप से जूए के लिए आमन्त्रित किया जा रहा है, उत्साहित किया जा रहा है, लोभ दिया जा रहा है।

मैंने स्वयं बहुत से वयस्कों को इस जूए में संलिप्त पाया। अध्ययन व प्रतिभा–विकास की इस अवस्था में वे सट्टा लगाकर रातों रात करोड़पति बनने के स्वप्न देखने लगे हैं। और इसी तरह शायद उनकी दृष्टि के सामने ही उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा जिसके जिम्मेवार होंगे हम सब, अभिभावक व हमारी सरकारें, और मीडिया। आज हम सही गलत का निर्णय करने में यदि समर्थ हैं तो यह उन लोगों का योगदान है जिन्होंने हमें अपरिपक्व अवस्था में ऐसा वातावरण दिया जिसमें हम पथभ्रष्ट होने से बच सके।

मीडिया द्वारा रातों रात करोड़ पति बने लोगों की खबरों को फैलाना, व सरकार का इन सट्टे वाली कंपनियों के बारे में जानते हुए, इनके दुष्परिणामों को जानते हुए भी मौन रहना नवपीढ़ी के तिमिरमय भविष्य का आह्वान है। यह सचमुच चिन्तनीय घड़ी है ।

कल्पना कीजिए जब एक परिवार में एक निकम्मा खाली बैठा लड़का दिन भर कुछ काम ना करके अपने भविष्य के प्रति निश्चिंत होकर दिनभर फोन चलाता है, अचानक वह सितारा बन जाता है क्योंकि उसने नित्य ऑनलाइन कुछ पैसे दाव पर लगाकर Dream 11 जैसी किसी ऑनलाइन कंपनी से करोड़ों रुपए जीत लिए हैं। घर में केक काटकर खुशियां मनाई जाएगी। और मनाए भी क्यों नहीं कोई करोड़पति बना है तो खुशियां मनाना स्वाभाविक है। परंतु उसी क्षेत्र के अन्य बच्चे जो उसी परिवेश में रहते हैं वे ये सब देखकर क्या करेंगे? उनकी विचारधारा क्या होगी? उन्हें यही लगेगा कि इस तरह पैसा कमाना सही है क्योंकि उनके लिए वही उदाहरण होगा, और वे उसी राह पर चल पड़ेंगे।

जिसका परिणाम क्या होगा ये चिंतनीय है।

मेरे मत में सरकार को इन कंपनियों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा देना चाहिए ताकि नवपीढ़ी को कर्मनिष्ठ व कर्मशील बनाया जा सके जुआरी सट्टेबाज नहीं।

— शिवकुमार शर्मा “शिवा”

संस्कृत शिक्षक शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश।

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