Thursday, September 19, 2024
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राष्ट्रवाद के आधार सैन्य बल, शास्त्र बल और राष्ट्रप्रेम

✍ आचार्य डॉ कर्म सिंह

शस्त्रे शास्त्रे च कौशलम् अर्थात् शस्त्र और शास्त्र में कौशल होना अनिवार्य है। शास्त्र अर्थात् हथियार और शास्त्र अर्थात् धर्म ग्रंथ। देश को बचाने के लिए शस्त्र और संस्कृति को बचाने के लिए शास्त्र जरूरी है। देश की सीमाओं की रक्षा के लिए शास्त्र होना अति आवश्यक है।  अर्थात् देश के पास पर्याप्त हथियार और अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए जरूरी शस्त्र, जल, थल, वायु सेना होना जरूरी है। सेना के पास वे सभी अत्याधुनिक हथियार होना भी जरूरी है जो अपने देश की सीमाओं की रक्षा कर सकें। सीमावर्ती देशों के पास जिस तरह का सैन्य बल हो उसका मुकाबला करने के लिए अगर अपने देश के पास पर्याप्त सैन्य बल और साधन तथा शस्त्र नहीं है, सुविधाओं की कमी है, तो शत्रु देश का मुकाबला करना कठिन हो जाता है और हर वक्त डरा,  सहमा हुआ रहना पड़ता है। अगर शस्त्र पर्याप्त हों , सैन्य बल की संख्या भी प्रचुर हो तो ऐसे में उनके पास संसाधनों, सुविधाओं और आधुनिक हथियारों की कमी नहीं होनी चाहिए। अगर सैन्य बल पर्याप्त है और सेना आधुनिक हथियारों से लैस है तो देश की सीमाएं सुरक्षित हैं।

दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम है देश की सेना  का आत्म बल। सेना का सम्मान और प्रोत्साहन । यदि देश का नेतृत्व सेवा का मनोबल बढ़ाने वाला है और सेना को भरपूर सम्मान मिल रहा है, तो सेना का हौसला हर वक्त बुलंद रहता है । इस स्थिति में सेना देश की सीमाओं की रक्षा करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है और दुश्मन को एक  इंच भूमि भी हड़पने का अवसर नहीं मिलता है।

अगर हम भारतवर्ष की मौजूदा स्थिति को देखें तो सेना के पास पहले के मुकाबले आज पर्याप्त सुविधाएं, आधुनिक हथियारों की उपलब्धता और देश के नेतृत्व द्वारा दिया जाने वाला प्रोत्साहन तथा सम्मान सभी कुछ है । इसलिए आज भारत की सेना अपने शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने की स्थिति में है। अगर कोई बुरी आंख से देखता है तो हम उसका मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और कोई हमें छेड़ता है तो हम उसे घर में घुसकर मारने की भी हिम्मत रखते हैं। ऐसा भारत ने कर भी दिखाया है। पहले के मुकाबले आज सेना का जोश बुलंदियों पर है । सेना के पास आधुनिक हथियार हैं, सेना का मनोबल बुलंदी पर है। इसलिए भारत की सीमाएं सुरक्षित हैं और भारत आत्मनिर्भरता तथा आर्थिक संपन्नता की मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

राष्ट्र के लिए दूसरा महत्वपूर्ण आधार है – शास्त्र।  अर्थात् अपने धर्म ग्रंथों का पढ़ना पढ़ना । दुर्भाग्य से आजादी के बाद भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, परंपराओं का पढ़ना पढ़ना बहुत कम हो चुका है। यह भी कहा जा सकता है कि राजनीतिक तौर पर एक षड्यंत्र के तहत शिक्षा मौलानाओं और कॉन्वेंट स्कूलों को सौंप दी गई और लोगों को धीरे-धीरे भारतीय धर्म संस्कृति से हटकर धर्मनिरपेक्षता के बनावटी मार्ग पर धकेल दिया गया।  विशेष कर हिंदुओं के धर्म ग्रंथो का पढ़ना पढ़ना बंद कर दिया गया और उसके विपरीत इस्लाम और ईसाइयत के पढ़ने पढ़ने को शिक्षण संस्थानों में सभी सुविधाएं उपलब्ध की गई। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू धर्म को कमजोर किए जाने के प्रयास होते रहे और अन्य मत मजहबों को बढ़ाने का प्रचार प्रसार करने का पूरा संरक्षण प्राप्त होता रहा।  इन वर्षों में  नीतियों और विदेश से आने वाले बेशुमार धन से धर्मांतरण को बल मिला। परिणामस्वरुप हिंदुओं की संख्या ईसायत और इस्लाम में परिवर्तित होती गई।  इस तरह की परिस्थितियां आज भी बनी हुई हैं । कभी तलवार के बल पर कभी लोग लालच देकर कभी गरीबों का फायदा उठाकर हिंदू लोगों धर्मांतरण किया जा रहा है। कुछ प्रांतों में और कुछ इलाकों में पाकिस्तान के नारे को और झंडे देखने को मिल रहे हैं।  वह सभी कुछ इन नीतियों का दुष्परिणाम है। 

हिंदू पर्व त्योहारों पर रोक लगाने का प्रयास रहता है और जहां कहीं हिंदू संगठित होकर अपनी परंपरा के अनुसार तीज त्यौहार मनाने का प्रयास करते हैं, शोभा यात्रा आदि निकलते हैं तो उस पर पथराव किया जाता है। मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं के लिए रहना मुश्किल होता जा रहा है जिससे पलायन की घटनाएं बढ़ने लगी हैं।  वर्तमान में कुछ प्रदेशों में हिंदुत्ववादी विचारधारा की प्रबलता के कारण स्थितियों में कुछ बदलाव होने लगा है। श्री राम मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिरों के निर्माण के बाद स्थितियों में में बदलाव होने से  हिंदुओं में आत्मबल की भावना का जागरण हुआ है।  परंतु शास्त्रों का ज्ञान दिया जाना और स्कूली शिक्षा में धर्म ग्रंथो का परिचय होना अभी बाकी है। जब गीता आदि धार्मिक ग्रंथो को पूरा विश्व एक स्वर से मान्यता देता है, उसे  ज्ञान के आधार पर स्वीकार करता है। उसके दर्शन और सिद्धांतों को मानता है तो फिर वेद, गीता और रामायण जैसे पवित्र और वैज्ञानिक सोच रखने वाले ग्रंथों को शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने में आनाकानी नहीं की जानी चाहिए। यही कारण है कि हिंदुओं की नई पीढ़ी को अपने धर्म ग्रंथो का ज्ञान नहीं है और जब अपने धर्म ग्रंथों, अपने देवी देवताओं, ईश्वर के प्रति हमारी मान्यताओं और परंपराओं का बोध नहीं होगा तो उनके प्रति हमारा विश्वास डगमगाता रहेगा और हम अपनी पूजा पद्धति सामाजिक रीति रिवाज से दूर होते रहेंगे।  इसलिए आवश्यक है कि शास्त्रों का पढ़ना पढ़ना किया जाना चाहिए।  मंदिरों में धर्म शास्त्रों की चर्चा होनी चाहिए।  अकेला कथा वाचन से अब काम चलने वाला नहीं है। अब भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के साथ-साथ गीता के ज्ञान की भी जरूरत है।

भारतीय धर्म और दर्शन के व्यापक प्रचार प्रसार के लिए वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत और गीता जैसे महान  ग्रंथों का पठन-पाठन अत्यंत आवश्यक है ताकि हम भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और अपने रीति-रिवाजों को जान सकें । उन पर हमारा विश्वास अटल हो। मंदिरों में देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ-साथ हम अपने धर्म के ज्ञान और उसके साथ जुड़ें,  विज्ञान तथा उसके व्यावहारिक रहस्यों को जान सकें ,तभी हम अन्य मत-मतांतरों  की कुंठित सोच से ऊपर उठकर सत्य सनातन धर्म पर गर्व कर सकेंगे।

राष्ट्रवाद का तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण अंग  है -राष्ट्र प्रेम।  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जब लंका पर विजय प्राप्त कर ली, तब  लक्ष्मण ने वहीं पर रहने की इच्छा जताई कि अयोध्या में तो भरत का राज है, हम यहीं पर शासन कर लेते हैं। परंतु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने लंका का राज्य विभीषण को सौपा और अपनी मातृभूमि, अपनी जन्मभूमि की सेवा के लिए अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वापस अयोध्या पधारे। मातृभूमि का  ऋण चुकाना कोई आसान काम नहीं । इसके लिए राष्ट्रभक्ति के संस्कार, शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा तथा देश पर तन, मन, धन न्योछावर  करने की भावना अत्यंत आवश्यक है। भारत में भी राष्ट्रवादी देशभक्तों ने समय-समय पर अपना सर्वस्व मातृभूमि की रक्षा के लिए न्योछावर करके अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।

वर्तमान में इजरायल और हमास का युद्ध छिड़ने के बाद यह देखा गया कि जहां विभिन्न देशों ने इसराइल में फंसे अपने लोगों को वहां से निकाला और अपने-अपने देश में पहुंचा  दिया । इसके विपरीत इसराइल ने विश्व के विभिन्न देशों में किसी भी कारण से रह रहे इसराइली नागरिकों को वापस अपने देश बुलाया और वे खुशी-खुशी अपने देश का बुरे वक्त में साथ देने के लिए वापस लौट आए। विद्यार्थी, व्यापारी, पर्यटक के रूप में विभिन्न देशों में रह रही अनेक इजरायल के नागरिक अपने देश में पहुंचे। राइफल उठाई और हमास का खत्म करने के लिए सीमा की ओर बुलंद हौसला लेकर के बढ़ने लगे। उन्हें अपने परिवार की चिंता नहीं है। इसराइल के पूर्व प्रधानमंत्री भी अपने देश की रक्षा के लिए सेवा में शामिल हो गए हैं यह राष्ट्रपति बताती है कि वहां का बच्चा-बच्चा अपने देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार है। इसराइल के लोग इस समय अपने रोजगार, अपने व्यापार की इस समय कोई चिंता नहीं है ।इस समय बस एक ही चिंता है कि राष्ट्र की सीमाओं और  देश की अस्मिता की सुरक्षा अपने देश के नागरिकों की जान को बचाना और दुश्मनों का सफाया करना। इसराइल के लोगों पर इस समय एक ही जुनून सवार है कि जिन आतंकवादियों  ने उनके देश के नागरिकों, महिलाओं बच्चों , बूढ़ों की हत्याएं की हैं उनके साथ बदल लेना है और अपना बदला पूरा करने के लिए वे किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।

यही राष्ट्रप्रेम का जज्बा इसराइल को भारी जीत दिलाएगा। क्योंकि यह बहुत बड़ा युद्ध है, इसलिए नुकसान इजराइल का भी होगा। परंतु यह भी निश्चित है कि इजरायल की जीत अवश्य होगी और ऐसा नहीं हुआ तो यह मजहबी आतंकवाद दुनिया में  बहुत तबाही मचाएगा ।  फिर मजहब के नाम पर पलने वाला यह आतंकवाद बेखौफ होकर आतंकी वारदातों को अंजाम देगा और दुनिया को  सुख चैन से जीने नहीं देगा। यह भी सत्य है कि इजरायली यहूदियों के पास अपना एकमात्र देश है -इजराइल। अगर इसराइल यहूदियों से छिन गया तो उनके पास अपना कोई देश नहीं बचेगा।  इसलिए इजरायल की जीत यहूदियों के लिए अपने धर्म ,संस्कृति , परंपराओं और देश के लिए सर्वोच्च महत्व रखती है।  भारत के  सामने  भी  यही  स्थिति है।  भले ही भारत के लोग विभिन्न देशों में फैल कर वहां के संविधान के अनुसार नियम कायदों में रहकर के कठोर परिश्रम कर रहे हैं और वहां उनका सम्मान भी हो रहा है परंतु आतंकवाद और देश विरोधी ताकतों की चुनौतियां भारत के सामने भी कम नहीं है। भारत भी इसी तरह के मजहबी आतंकवाद के साथ कई सालों से संघर्ष कर रहा है और भारत के भीतर और बाहर दोनों तरफ से राष्ट्र विरोधी ताकतों का खतरा बना हुआ है। ऐसी विकट परिस्थितियों में राष्ट्र प्रेम की भावना होना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा  हिंदुओं के लिए भी पूरे विश्व में एकमात्र देश भारतवर्ष ही है। क्योंकि जो लोग सनातन धर्म को समाप्त करने की ओर आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं वह कभी भारत का भला चाहने वाले नहीं हो सकते हैं। इसलिए भारत को भी इजरायल की राह पर चलना होगा। इजरायल की तरह ही राष्ट्र के लिए राष्ट्र को सर्वोच्च मान कर आगे बढ़ना होगा। तभी भारत अपनी समृद्ध ज्ञान परंपरा के आधार पर विश्व गुरु होने के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा। अतः राष्ट्र की अस्मिता की सुरक्षा और अखंडता के लिए शस्त्र एवं शास्त्र का कौशल और राष्ट्र प्रेम की प्रचंड भावना को अपनाए जाने की आवश्यकता है।

✍ आचार्य डॉ कर्म सिंह

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