शास्त्री भर्ती प्रक्रिया एवं पदनाम की उहापोह की स्थिति पर विचार जरुरी- संस्कृतमहाविद्यालय-प्राध्यापकसंघ
आनन-फानन में चयनप्रक्रिया के बजाय विशेषज्ञों की बैठक बुलाकर निर्णय करे सरकार – संस्कृतशिक्षकपरिषद्
ऋतु शर्मा, शिमला
हिमाचल राजकीय संस्कृत महाविद्यालय प्राध्यापक संघ एवं हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् ने संयुक्त वक्तव्य में वर्तमान में शास्त्री अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया एवं टीजीटी पदनाम के सन्दर्भ में चल रही असमंजस की स्थिति पर प्रदेश सरकार के माननीय शिक्षा मंत्री एवं शिक्षा सचिव से निवेदन किया है कि शास्त्री भर्ती एवं टीजीटी पदनाम के सन्दर्भ में आये दिन जो विज्ञप्तियां जारी हो रही हैं तथा विषय की अस्पष्टता होने से जो गतिरोध चला हुआ है उस पर विराम लगाने के लिए सबसे पहले 11 अक्टूबर 2023 को शास्त्री अध्यापकों की बैचवाइज भर्ती प्रक्रिया की जो अधिसूचना प्रसारित हुई है उसे स्थगित किया जाये। उसके बाद राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (NCTE) के द्वारा वर्ष 2010 से लेकर 2018 तक शिक्षकों की भर्ती हेतु जो अधिसूचनाएं संशोधनों के साथ जारी की गई हैं उन पर विचार करने के लिए विधि विशेषज्ञ एवं विषय विशेषज्ञ के रूप में विशेषाधिकारी संस्कृत तथा संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य एवं आचार्य व संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रतिनिधियों एवं सेवानिवृत्त विद्वानों की एक समिति बनाकर एकमत से निर्णय लिया जाये।

क्योंकि वर्तमान में जो गतिरोध चला है और सभी में एनसीटीई के निर्देशों को लेकर जो भ्रम की स्थिति बनी हुई है उसे दूर करने के लिए यह जरूरी है। 11 अक्टूबर 2023 की अधिसूचना के अनुसार शास्त्री अध्यापकों की भर्ती सी एण्ड वी केटेगरी में जिलास्तर पर की जा रही है और नियम टीजीटी के लगाये जा रहे हैं। यह किसी भी प्रकार से तर्क संगत नहीं है। इसके साथ आये दिन टीजीटी पदनाम को वापिस लेने की विज्ञप्तियां भी सामने आ रही हैं यह भी सेवारत शास्त्री एवं भाषाध्यापकों के साथ न्याय नहीं है। संस्कृत महाविद्यालय प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष डॉ मुकेश शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद शिक्षा की गुणवत्ता के लिए कार्य करती है तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए ही शिक्षकों की पात्रता निर्धारित करती है। जिसके अनुसार सभी शिक्षक अपने विषय में स्नातक तथा प्रशिक्षित होने चाहिए। इसमें स्नातक का अर्थ सम्बंधित विषय में स्नातक उपाधि है न कि बीए तथा प्रशिक्षण भी (बीएड) संबंधित विषय में हो न कि किसी भी विषय में। हिमाचल परम्पराओं का प्रदेश है तथा सबसे ज्यादा संस्कृत महाविद्यालयों वाला प्रदेश है जिनमें हजारों विद्यार्थी शास्त्री उपाधि प्राप्त कर प्रदेश को गौरवान्वित कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा उत्तराखंड जैसे राज्य भी शास्त्री पद के नियमों और परम्पराओं को प्रदेश में लागू करने के लिए विचार कर रहे हैं। अतः हिमाचल प्रदेश सरकार एवं शिक्षा विभाग को इन संस्कृत महाविद्यालयों की उपादेयता पर भी विचार कर शास्त्री भर्ती एवं पदनाम पर विचार करना चाहिए। इसके लिए एनसीटीई के नियमों को ध्यान में रखते हुए भी मध्य मार्ग निकल सकता है।संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डॉ मनोज शैल ने कहा कि ऐसा न हो इस उहापोह की स्थिति में कहीं यह भर्ती भी पहले की तरह कोर्ट के चक्कर में उलझ जाये। इन सभी विषयों को ध्यान में रखकर सरकार को एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर ही निर्णय लेना चाहिए और तब तक यह भर्ती प्रक्रिया रोक देनी चाहिए।