मनोहर सिंह एक कलाकार,अभिनेता और निर्देशक के रूप में नाटक, टीवी सीरियल और फिल्मों में अत्यंत लोकप्रिय रहे। उन्होंने अनेक नाटकों में दमदार अभिनय करके जहां दर्शकों को अपनी ओर आकृष्ट किया वहीं टीवी सीरियल से भी नाम कमाया और फिल्मों में बतौर अभिनेता अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ने में भी सफल रहे। यह उनके लंबे संघर्ष कड़ी मेहनत और कला के लिए समर्पित होने का ही परिणाम था। उन्होंने अपने समय के प्रख्यात निर्देशकों के साथ काम करते हुए अपनी प्रतिभा को दिखाने में गुरेज नहीं किया। इसलिए आज भी वे एक महान कलाकार के रूप में याद किए जाते हैं।
प्रख्यात रंगकर्मी मनोहर सिंह का जन्म 12 अप्रैल 1942 को शिमला के निकट क्यारा गांव में मियां बुद्धि सिंह के घर हुआ। रंगमंच के संस्कार उन्हें विरासत में पिता से मिले। बाल्यकाल में वे अपने पिताजी के साथ नाटक मंडली में नाटक किया करते थे और स्कूल में होने वाले नाटकों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। सुन्नी भूंकू नाटक में इन्होंने भूंकू गद्दी का ऐसा दमदार अभिनय किया कि लोग इन्हें भूंकू के नाम से जानने लगे। कुछ समय के लिए उन्होंने शिमला के ड्रामा डिवीजन में भी काम किया परंतु वास्तव में मनोहर सिंह तो नाटकों के माध्यम से राष्ट्रीय नाट्यालोक में छा जाने के लिए अभिनय के क्षेत्र में आए थे। इसलिए वे शिमला से निकलकर 1968 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में पहुंचे और 1971 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसी वर्ष मनोहर सिंह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंग मंडल के प्रमुख बने।
ब्रिटिश काउंसिल से छात्रवृत्ति प्राप्त करने के बाद रॉयल शेक्सपियर थिएटर लंदन के साथ भी जुड़े रहे। सन् 1972 में इनकी इन्हें तुगलक का रोल मिला और फिर लगभग बारह चौदह सालों तक उन्होंने यही तुगलक का रोल कई बार खेला। तुगलक के दमदार अभिनय की सराहना करते हुए खुशवंत सिंह तो उन्हें तुगलक ही कहा करते थे। इस उपलब्धि के बाद मनोहर सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। संध्या छाया में बूढ़े बाप का महाभोज में मुख्यमंत्री का और लुक बैक इन एंगर में जिमी पोर्टल के रोल करके उन्होंने अपने दर्शकों को हमेशा आनंद विभोर कर दिया।
मनोहर सिंह को 1980 में ऑल इंडिया क्रिटिक्स एसोसिएशन अवार्ड मिला और 1982 में राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी ने उनके उत्कृष्ट अभिनय के लिए उन्हें अलंकृत किया। 15 अप्रैल 1984 को हिमाचल दिवस के अवसर पर रोहडू में आयोजित विशाल समारोह में त तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह के कर कमलों द्वारा उन्हें हिमाचल प्रदेश का राज्य सम्मान प्राप्त हुआ। ओथेलो, तुगलक, दांतो की मौत, लुक बैक इन एंगर, छोटे सैयद बड़े सैयद, आधे अधूरे , संध्या छाया , लोकेशन चौक सर्कल, जाग उठा है रायगढ़, थ्री पेनी, ओपेरा, रस गंधर्व , किंग लियर, एंटीगनी, स्कंदगुप्त, महाभोज , बेगम बर्वे, नागमंडल, हिम्मत माई आदि नाटकों में उन्होंने अपने सशक्त अभिनय की अमिट छाप छोड़ी।
टीवी सीरियल की कड़ी में राग दरबारी, दर्द ,महायज्ञ ,अदालत, खजाना, तेरे मेरे सपने, मुल्ला नसीरुद्दीन, तमस, एक मुलाकात आदि में विभिन्न भूमिकाएं निभाई। फिल्मी दुनिया में भी उन्होंने अपने अभिनय का सभी को कायल बना दिया। किस्सा कुर्सी का, डैडी , रुदाली , दीक्षा , मैं आजाद हूं , तिरंगा आदि फिल्मों में मनोहर सिंह ने जो अभिनय किया उसे आज भी बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। मनोहर सिंह नाटक के कलाकार थे और चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया में कुछ फिल्मों में यादगार अभिनय करके अमूल्य योगदान देने के बाद भी नाटक के प्रति उनका मोह बना रहा।
मनोहर सिंह के अभिनय की शुरुआत शिमला के पारंपरिक लोकनाट्य करियाला से हुई लोकनाट्य के संबंध में उनका कहना था हमारी लोककला बहुत ऊंची और प्रभावशाली है जरूरत है उसमें अनुसंधान की, उसके प्रलेखन की, हमें अपनी निधि को संजोना होगा और वह निधि ऐसी हो कि जिसमें से मिट्टी की गंध समाईं हो। कुछ लोग लोक कला को निर्देशन से तराशने की बात करते हैं मैं इसे नहीं मानता। लोककला तो स्वयं जन्मती है, पनपती है । इसमें घालमेल करना इसके सहज प्रभाव को रोकना है। चंबा का बाजा हम सिरमौर की नाटी में क्यों बजाएं।
मनोहर सिंह ने अलकाजी , अमाल अलाना आदि तत्कालीन प्रख्यात नाट्य निर्देशकों के निर्देशन में नाटकों का मंचन किया जिन्हें उनके अभिनय के लिए आज भी याद किया जाता है। वे अभिनय के साथ-साथ अच्छी तकनीक पर भी बल देते रहे परंतु इस हिदायत के साथ कि तकनीक का उपयोग अभिनय और प्रस्तुति पर हावी ना रहे। मनोहर सिंह अपने समय के एक ऐसे बेजोड़ कलाकार थे जिन्होंने नाटक की बारीकियों का अध्ययन किया, हर पात्र को अपने में ढाला, उसमें डूब गए और जब मंच पर आए तो लंबे अरसे तक उसी पात्र के नाम से उन्हें जाना गया, यही मनोहर सिंह की खूबी रही है जिसके लिए उन्हें हमेशा हमेशा के लिए याद किया जाता रहेगा।
– डॉ. कर्म सिंह, पूर्व सचिव
हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला