बहुत बार मनुष्य चोटी पर होता है,, पर उसे पता नहीं होता वह चोटी पर है जय , वह समझता है आसमां अभी भी उसे नहीं मिला और वह वहाँ से अवसाद में छलांग लगा देता है,, जबकि सत्य यह है कि आसमां तो जमीन पर भी उपलब्ध है पहाड़ की चोटी पर भी उपलब्ध है,, और तो और उसके अंदर भी आसमान है,, वास्तव में वह आसमान न मिलने के कारण नहीं मरता, वह असंतुष्टि के कारण मरता है,,,
आकाश का अर्थ ऊँचाई नहीं,, आकाश तो ज़मीन के चारों तरफ है,, दायें है बायें है,, आगे है,पीछे है ऊपर है और नीचे भी है,, अंतरिक्ष में कोई स्थान ऐसा नहीं है जहाँ आकाश नहीं है,, वो तो महान कही जाने वाली ठोस पृथ्वी में भी है,, आकाश वास्तव में “ख” अर्थात खाली स्थान युक्त दूरी है ,, अर्थात खाली स्थान,, अर्थात स्पेस, अर्थात दूरी,, सभी की मांग है,, यह सूक्ष्म भी है और महान भी,, पंचमहाभूत सूक्ष्म अर्थ में भी प्रयुक्त होते हैं और महान अर्थ में भी ,, आसमान प्रायः महान अर्थ में ही प्रयुक्त होता है,, स्पेस या दूरी अर्थ इसका सूक्ष्म अर्थ है,, यह स्पेस या दूरी बहुत ही महत्वपूर्ण है,, स्पेस या दूरी न हो तो आसमान के सारे ग्रह उपग्रह नक्षत्र तारे निहारिकायें गड्डम गड्ड हो जायें,, हमारी पृथ्वी का भी अस्तित्व नहीं होता,,
यह दूरी न हो तो पृथ्वी पर न जल होता न वायु न अग्नि, न शून्य,, न हमारे शरीर में कोई रंध्र होते न कान न नासिका न मुख न मलद्वार,, न मूत्र के लिए कोई स्थान, न त्वचा में पसीना निकलने के लिए कोई सुविधा न शरीर के अंदर ही फुफ्फुस के लिए स्थान होता न अमाशय पक्वाशय होते न ऑंत होती, न हड्डियों में मज्जा के लिए स्थान होता न रस वाहिनियां होती न रक्त वाहिनियां,,, न हम खाना खा पाते न सांस ले पाते न मलमूत्र कर पाते.
पृथ्वी पर आसमान नहीं होता तो हम पृथ्वी पर रहते कैसे? हम धर नहीं बना पाते चल नहीं पाते अर्थात आसमान या स्पेस या दूरी के बिना कुछ सम्भव नहीं.
हम दूरी के कारण तंग नहीं होते हैं हम तंग होते हैं जीने के लायक उचित दूरी न होने के कारण,,, इसका सबसे बड़ा उदाहरण वाहनों के पीछे लिखा गया नारा है, उचित दूरी बनाए रखें,, यही उचित दूरी हमारे आपस के सम्बंधों में भी आवश्यक है,, न तो यह दूरियाँ अत्यधिक होनी चाहियें न इतनी कम कि सांस भी न ले पायें,,
और निराशा से भी यह दूरी इतनी तो अवश्य होनी चाहिये कि हम आत्महत्या न कर लें,,, जीवन में हमें वर्तमान में असंतुष्टि और संतुष्टि में भी एक संतुलन बना कर चलना चाहिए ताकि हम अति संतुष्ट हो कर अकर्मण्य न हो जायें और असंतुष्ट हो कर आत्मघात न कर लें,,,
तो स्वयं के लिए आकाश बनाते हुए,, दूसरों के लिए भी आकाश छोड़ें ताकि सभी का जीवन सम्भव हो सके क्योंकि सृष्टि में आकाश की कहीं कमी नहीं।।
डॉक्टर जयनारायण कश्यप
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